S.No.
int64
1
700
Title
stringclasses
17 values
Chapter
stringclasses
18 values
Verse
stringlengths
9
11
Sanskrit Anuvad
stringlengths
51
107
Hindi Anuvad
stringlengths
84
475
Enlgish Translation
stringlengths
75
649
1
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.1
धृतराष्ट्र उवाच । धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥...
धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
Dhrtarashtra asked of Sanjaya: O SANJAYA, what did my warrior sons and those of Pandu do when they were gathered at KURUKSHETRA, the field of religious activities? Tell me of those happenings.
2
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.2
सञ्जय उवाच । दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥ १.२ ...
संजय बोले- उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखा और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा|
Sanjaya explained: Now seeing that the army of the PANDAVAS was set up properly, the Price DURYODHANA called his teacher, DRONA, to his side and spoke these words:
3
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.3
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् । व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥ १.३ ॥
हे आचार्य! आपके बुद्धिमान्‌ शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए|
Behold O, Master, the mighty army of the sons of PANDU, led by the son of DRUPADA, your talented disciple.
4
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.4
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि । युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥ १.४ ॥
इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं
Present here are the mighty archers, peers or friends, in warfare, of ARJUNA and BHIMA. Their names are: YUYUDHANA, VIRATA and DRUPADA, the great chariot-warrior. Other great warriors were also present on the battlefield: DHRSHTAKEUT, CHEKITANA and the brave and noble King of Kasi, KUNTIBHIJA and SAIBYA; these are among the great warriors. Other courageous and great chariot-warriors were: YUDHAMANYU, the brave UTTAMAUJA, SAUBHADRA, and the sons of DRAUPADI.
5
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.5
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् । पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः ॥ १.५ ॥
धृष्टकेतु, चेकिताना, और काशी के बहादुर राजा, पुरुजीत और कुंतीभोज और सैब्य, सबसे अच्छे पुरुष।
Dhrishtaketu, Chekitana, and the valiant king of Kashi, Purujit and Kuntibhoja and Saibya, the best of men.
6
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.6
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् । सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥ १.६ ॥
बलवान युधमन्यु और वीर उत्तमौज, सुभद्रा के पुत्र और द्रौपदी के पुत्र, वे सभी, मंडल सेनापति।
The strong Yudhamanyu and the brave Uttamaujas, the son of Subhadra and the sons of Draupadi, all of them, divisional commanders.
7
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.7
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम । नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥ १.७ ॥
हे ब्राह्मणश्रेष्ठ ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिये । आपकी जानकारी के लिये मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ ।
Duryodhana spoke unto his master Drona: O Best of the twice born, I name all of those who are our distinguished Chiefs, the leaders of my army, of your information only.
8
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.8
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजयः । अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥ १.८ ॥
आप —– द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा ।
Your wise self, BHISMA, KARNA, KRIPA, the victorious in fight; ASVATTHAMA, VIKARNA and SAUMADATTI as well.
9
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.9
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः । नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥ १.९ ॥
और भी मेरे लिये जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित और सब-के-सब युद्ध में चतुर हैं ।
Duryodhana further said to Drona: Yet several other heroes and great men, well-trained in combat, armed with assorted powerful weapons and missiles, are ready to lay down their lives for me!
10
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.10
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् । पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ॥ १.१० ॥
भीष्मपितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीमद्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है ।
Duryodhana explained with pride to Drona: Our army, led by BHISMA, is numerous and skilled. The army led by BHIMA, however, is weak and lacking in strength and power.
11
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.11
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः । भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥ १.११ ॥
इसलिये सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी नि:संदेह भीष्मपितामह की सब और से रक्षा करें ।
Duryodhana instructed his army: Now all of you quickly assume your proper positions for battle, your main goal being to protect and fight alongside BHISMA, your leader, by all means.
12
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.12
तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः । सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् ॥ १.१२ ॥
कोरवों में वृद्ब बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के ह्रदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया ।
To bring joy to DURYODHANA’s heart, the great grandsire BHISMA, the oldest and most famous of the KAURAVAS, roared loudly like a lion (a battle-cry), and blew his conch to signal the army to advance towards the enemy.
13
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.13
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः । सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥ १.१३ ॥
इसके पश्चात् शंख और नगारे तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे । उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ ।
Tremendous noise followed. Conches, kettle-drums, tabors, and trumpets and cowhorns blared across the battlefield.
14
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.14
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ । माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः ॥ १.१४ ॥
इसके अनन्तर सफेद घोडों से युक्त्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाये ।
MADHAVA (Lord Krishna) and PANDAVA were seated in their magnificent chariote attached to white horses and they blew gracefully their divine conches.
15
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.15
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः । पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ॥ १.१५ ॥
श्रीकृष्ण महाराज ने पाञ्चजन्य-नामक, अर्जुन ने देवदत्त-नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेन ने पौण्ड्र-नामक महाशंख बजाया ।
The PANCHAJANYA (the name of one of the conches) was blown by HRISHIKESA (Lord Krishna). The conch named DEVADATTA was blown by DHANANJAYA (Arjuna).
16
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.16
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः । नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥ १.१६ ॥
कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय-नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये ।
The King YUDISHTHIRA. the son of KUNTI blew the great conch called ANANTAVIYAYA: NAKUL and  SAHDEV blew SUGHOSHA and MANIPUSHPAKA (also names of conches).
17
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.17
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः । धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥ १.१७ ॥
श्रेष्ठ धनुषवाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टधुम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि राजा द्रु पद एवं द्रौपदी के पाँचो पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रापुत्र अभिमन्यु —- इन सभी ने, हे राजन् ! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाये ।
Several conches were also blown by: The ruler of KASI. the great warrior SIKHANDI, DHRSTHTADYUMNA, VIRATA, and SATYAKI, the invincible. DRUPADA and the sons of DRAUPADI, and the mighty armed son of SUBHADRA also blew their several conches.
18
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.18
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते । सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक् ॥ १.१८ ॥
द्रुपद और द्रौपदी के पुत्रों, हे पृथ्वी के भगवान, और सुभद्रा के पुत्र, शक्तिशाली सशस्त्र, ने अपने-अपने शंख उड़ा दिए।
Drupada and the sons of Draupadi, O Lord of the Earth, and the son of Subhadra, the mighty armed, blew their respective conches.
19
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.19
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् । नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन् ॥ १.१९ ॥
और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी-को भी गुँजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात् आपके पक्षवालों के ह्रदय विदीर्ण कर दिये ।
The earth and sky was filled with the extremely loud and terrible noise of the PANDAVAS’ bugles and voices which struck fear in the hearts of the KAURAVAS (the sons of Dhrtarashtra).
20
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.20
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः हृषीके...
हे राजन् ! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-सम्बन्धियों को देखकर उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर ह्रषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा —— हे अच्युत ! मेरे रथको दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये |
Sanjaya said :Then, my king, seeing the KAURAVAS (the army of Dhrtarashtra), positioned and ready to begin fighting, ARJUNA, whose flag was that of HANUMAN, spoke the following words to SHRI KRISHNA, as he lifted his bow to fight the battle.
21
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.21
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते |अर्जुन उवाच |सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥ १.२१ ॥
अर्जुन ने कहा: "दोनों सेनाओं के बीच में, मेरा रथ, हे अच्युत, रखें, ताकि मैं उन लोगों को देख सकूं जो यहां युद्ध करने के इच्छुक हैं और इस युद्ध की पूर्व संध्या पर, मुझे बताएं कि मुझे किसके साथ लड़ना है।
Arjuna said: In the midst of the two armies, place my chariot, O Achyuta, that I may behold those who stand here desirous of fighting and, on the eve of this battle, let me know with whom I must fight.
22
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.22
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् | कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ १.२२ ॥
और जब तक की मैं युद्धक्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख लू कि इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन-किनके साथ युद्ध करना योग्य है, तब तक उसे खड़ा रखिये ।
Place my chariot, O ACHYUTA (Lord Krishna) between the two armies so that I may see those who wish to fight for us and also to see who I have to fight against, in this war.
23
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.23
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः । धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ १.२३ ...
दुर्बुद्भि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहनेवाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आये हैं, इन युद्ध करनेवालों कों मैं देखूंगा ।
I desire to see all of those great warrior kings who have gathered here to fight alongside the evil-minded DURYODHANA (son of Dhrtarashtra).
24
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.24
सञ्जय उवाच । एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥ १.२४ ॥
संजय बोले —– हे धृतराष्ट्र ! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्रीकृष्णचन्द्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा कर के इस प्रकार कहा की हे पार्थ ! युद्ध के लिये जुटे हुए इन कौरवों को देख ।
Sanjaya continued: After being requested by GUDAKESA (Arjun), HRISHIKESA (Lord Krishna), placed ARJUN’s magnificent chariot between the armies. The chariot was now facing BHISMA, the Guru DRONA, and all the rulers of the earth; then Lord KRISHNA spoke to ARJUNA: “O, PARTHA (Arjuna), see yourself all of the KAURAVAS assembled here on the battlefield today.”
25
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.25
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् । उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति ॥ १.२५ ॥
भीष्म और द्रोण और पृथ्वी के सभी शासकों के सामने उन्होंने कहा, हे पार्थ, देखो ये कुरु एक साथ इकट्ठे हुए।
In front of Bhishma and Drona, and all the rulers of the earth, he said, O Partha, behold these Kurus gathered together.
26
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.26
तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितॄनथ पितामहान् आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा श्वश...॥ 26 ॥
इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों-पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुह्रदों को भी देखा  उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वे कुन्तीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले ।
ARJUNA, gazed upon the army and then saw in both armies, paternal uncles, grandfathers, teachers, maternal uncles, cousins, sons, grandsons, friends, fathers-in-law, and well-wishers. The son of KUNTI (Arjuna), after viewing all of those relatives and friends posted in their positions on the battlefield, became melancholy and filled with compassion (love) for his relatives, and spoke in a sad voice:
27
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.27
श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि | तान्समीक्ष्य स कौन्तेय: सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ॥ १.२७ ॥
(उसने देखा) दोनों सेनाओं में ससुर और दोस्त भी। तब कुंती के पुत्र ने इन सब सगे-संबंधियों को इस प्रकार खड़े देखकर, इस प्रकार दुःखी होकर, गहरी दया से भरपूर बात की।
(He saw) Fathers-in-law and friends also in both the armies. Then the son of Kunti, seeing all these kinsmen thus standing arrayed, spoke thus sorrowfully, filled with deep pity.
28
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.28
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् | अर्जुन उवाच | दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्
अर्जुन बोले —– हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है ।
Arjuna said: O KRISHNA, seeing my kinsmen (relatives) standing before me to fight against me in this war, I find myself unable to move my body, and my mouth has become parched. He continued: I have no longer any control over my body; my hair stands on end. I cannot control my bow GANDIVA, and my skin burns all over.
29
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.29
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते । गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ॥ १.२९ ॥
मेरे अंग विफल हो जाते हैं और मेरा मुंह सूख जाता है, मेरा शरीर तरकश करता है और मेरे बाल अंत में खड़े होते हैं।
My limbs fail and my mouth is parched, my body quivers and my hair stands on end.
30
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.30
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चै व परिदह्यते |न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन: ॥ १.३० ॥
हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिये मै खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ ।
I can no longer stand; my knees are weak; my mind is clouded and spinning in many directions, and, dear KRISHNA, I am seeing bad signs.
31
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.31
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे । न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च ॥ १.३१ ॥
हे केशव ! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता ।
I cannot see any good in slaughtering and killing my friends and relatives in battle. O KRISHNA, I have no use nor desire for victory, empire or even materialistic pleasures.
32
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.32
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा । येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च ॥ १.३२ ...
हे कृष्ण ! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही । हे गोविन्द ! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है ?
O GOVINDA, (Krishna), what in the use of a kindgom, enjoyment or even life?
33
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.33
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगा: सुखानि च | त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च ॥ १.३३ ॥
हमें जिनके लिये राज्य, भोग और सुखादिं अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्याग कर युद्ध में खड़े हैं ।
Those whom we seek these pleasures from (the enjoyment of kingdom), are standing before us staking their lives and property, possessions which I have no desire for.
34
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.34
आचार्या: पितर: पुत्रास्तथैव च पितामहा: | मातुला: श्वशुरा: पौत्रा: श्याला: सम्बन्धिनस्तथा॥ १.३४ ॥
गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी प्रकार दादे, मामे, ससुर, पौत्र, साले तथा और भी सम्बन्धी लोग हैं ।
O Lord KRISHNA, I do not want to kill my teachers, uncles, friends, fathers-in-law, grandsons, brothers-in-law, and other relatives and well-wishers.
35
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.35
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन | अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते ॥ १....
हे मधुसूदन ! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है ?
Arjuna spoke to the Lord Madhusudhana (Lord Krishna): I could not slay (kill) my relatives even if I had to give my own life away. I could not slay them even for domination of the three worlds; how could I slay them for domination of this earth.
36
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.36
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्सबान्धवान् स्वजनं हि क...
अतएव हे माधव ! अपने ही बान्धव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिये हम योग्य नहीं हैं ; क्योंकि अपने ही कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे ।
O KRISHNA, why should we kill our own loved ones and kinsmen when no happiness or good can come out of so doing?
37
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.37
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः । कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ॥ १.३७ ॥
यधपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग से कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते, तो भी हे जनार्दन ! कुल के नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिये क्यों नहीं विचार करना चाहिये ?
Greed has clouded the minds and overpowered the intelligence of the sons of DHRTARASHTRA and so they feel no guilt, and fail to see the sins they are commiting by betraying friends and destroying their families. Arjuna continued: Why should we not realize, O KRISHNA, the wrong-doings and sins that the sons of DHRTARASATRA cannot see and realize, and save ourselves from committing these sins?
38
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.38
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् । कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥ १.३८ ॥
हम, जो परिवार-इकाइयों के विनाश में स्पष्ट रूप से बुराई देखते हैं, इस पाप से दूर होना क्यों नहीं सीखना चाहिए, हे जनार्दन?
Why should not we, who clearly see evil in the destruction of the family-units, learn to turn away from this sin, O Janardana?
39
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.39
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः । धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥ १.३९ ॥
कुल के नाश से सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं, धर्म के नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है ।
Arjuna explained: When one begins to destroy his own family, then his ancient, respected traditions, customs, moral values, principles, are destroyed as well. By the destruction of these, the whole family becomes evil and huge sins are committed.
40
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.40
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः । स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः ॥ १.४० ॥
हे कृष्ण ! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियां अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय ! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है  ।
O KRISHNA, with the growth of evil in a family, the family women, become impure and evil, and sinning with those of other castes would follow.
41
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.41
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च । पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥ १.४१ ॥
वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने के लिये ही होता है । लुप्त हुई पिण्ड और जलकी क्रिया वाले अर्थात् श्राद्ब और तर्पण से वंचित इनके पितरलोग भी अधो गति को प्राप्त होते हैं|
By the mixture of castes, families will breed more family destroyers; being deprived of food and water, their ancestors will also fall from heaven.
42
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.42
दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः । उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ॥ १.४२ ॥
इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल धर्म और जाती-धर्म नष्ट हो जाते हैं|
The everlasting traditions, customs and principles of a caste are destroyed when different castes join together and create mixed-blood generations. This leads to confusion of a caste’s customs.
43
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.43
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन । नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥ १.४३ ॥
हे जनार्दन ! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है, ऐसे मनुष्यों का अनिश्चित काल तक नरक में वास होता है, ऐसा हम सुनते आये हैं ।
It has been heard, O JANARDHANA (Krishna) that hell is the permanent home for those men whose families’ religious practices have been broken and destroyed.
44
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.44
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् । यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ॥ १.४४ ॥
हा ! शोक ! हमलोग बुद्भिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उधत हो गये हैं|
Moreover, it is a great shame, that knowing and understanding everything, we are still ready to commit such a great sin of killing our kinsmen, just because of greed for kingdom and pleasures.
45
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.45
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः । धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥ १.४५ ॥
यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करने वाले को शस्त्र हाथ में लिये हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डालें तो वह मारना भी मेरे लिए अधिक कल्याणकारक होगा|
I think it would be better for me if the sons of DHRTARASHTRA slay me, with their weapons while I remain unarmed and unwilling to fight back
46
Arjuna's Vishada Yoga
Chapter 1
Verse 1.46
सञ्जय उवाच । एवमुक्त्वार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ॥ १.४६ ॥
संजय बोले —– रणभूमि में शोकसे उद्भिग्नमन वाले  अर्जुन इस प्रकार कहकर, बाण सहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गये ।
Sanjaya said: Having said this, ARJUNA, still extremely sad and confused sat on the seat of this chariot throwing away his bow and arrows.
47
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.1
संजय उवाच । तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥ २.१ ॥
संजय बोले—उस प्रकार करुणासे व्याप्त और आँसुओंसे पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रोंवाले शोकयुक्त उस अर्जुनके प्रति भगवान् मधुसूदनने यह वचन कहा|
Sanjay recounted: MADHUSUDANA (Lord Krishna) then spoke in his divine voice unto ARJUNA, who was terribly upset and overcome with grief and guilt at the thought of war he was about to enter into.
48
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.2
श्रीभगवानुवाच । कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥ २.२ ॥
श्रीभगवान् बोले- हे अर्जुन ! तुझे इस असमयमें यह मोह किस हेतुसे प्राप्त हुआ ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्गको देनेवाला है और न कीर्तिको करनेवाला ही है|
The Blessed Lord asked of Arjuna: Dear Arjuna, why have you been struck with fear, guilt and sorrow at this moment ?
49
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.3
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते । क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥ २....
इसलिये हे अर्जुन ! नपुंसकताको मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप ! हृदयकी तुच्छ दुर्बलताको त्यागकर युद्धके लिये खड़ा हो जा|
O Arjuna, be brave, be a bold, courageous man.  Do not be a coward and a feeble person, it does not suit such a great warrior and killer of enemies as you !
50
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.4
अर्जुन उवाच । कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥ २.४ ॥
अर्जुन बोले– हे मधुसूदन ! मैं रणभूमिमें किस प्रकार बाणोंसे भीष्मपितामह और द्रोणाचार्यके विरुद्ध लडूगा ? क्योंकि हे अरिसूदन! वे दोनों ही पूजनीय हैं|
Arjuna asked the Lord: O Madhusudana (Lord Krishna), the killer of foes, tell me how I am to kill BHISMA and DRONA when they are both worthy of my worship ?
51
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.5
गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके । हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भ...
इसलिये इन महानुभाव गुरुजनोंको न मारकर मैं इस लोकमें भिक्षाका अन्न भी खाना कल्याणकार समझता हूँ; क्योंकि गुरुजनोंको मारकर भी इस लोकमें रुधिरसे सने हुए अर्थ और कामरूप भोगोंको ही तो भोगँगा
It is much better to live on a beggar’s earnings than to kill the great saints or Gurus.  After killing them I will only enjoy material wealth and pleasure stained with their blood.
52
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.6
न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः । यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेऽवस्थिताः ...
हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिये युद्ध करना और न करना—इन दोनोंमेंसे कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे । और जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्रके पुत्र हमारे मुकाबलेमें खड़े हैं|
The sons of DHRTARASHTA stand here before us as our opponents and enemies.  It is difficult to say which is better: whether they should destroy us or whether we should conquer the.  If we choose to slay them, how can we possibly care to live on ?
53
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.7
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः । यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष...
इसलिये कायरतारूप दोषसे उपहत हुए स्वभाववाला तथा धर्मके विषयमें मोहितचित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये; क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिये आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिये|
Please, Dear Lord, I am your disciple, kindly guide and instruct me, for I have taken refuge and shelter in you.I am confused as to my duties and what is good for me. I beg you to give me knowledge, wisdom and a clear, logical mind.
54
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.8
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् । अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि...
क्योंकि भूमिमें निष्कण्टक, धन-धान्यसम्पन्न राज्यको और देवताओंके स्वामीपनेको प्राप्त होकर भी मैं उस उपायको नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियोंके सुखानेवाले शोकको दूर कर सके|
I cannot find any cure for the great great grief I suffer, O KRISHNA, even though by winning this war, I would achieve great power and rule over the earth and the heavens.
55
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.9
सञ्जय उवाच । एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तपः न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥ २...
संजय बोले – हे राजन् ! निद्राको जीतने – अर्जुन अन्तर्यामी श्रीकृष्ण महाराजके प्रति इस प्रकार कहकर फिर श्रीगोविन्दभगवान्से ‘युद्ध नहीं करूँगा’ यह स्पष्ट कहकर चुप हो गये|
Sanjaya said: Dear Dhrtarashtra, my great king, after addressing HRISHIKESHA (Lord of the senses).  GUDUKESHA (conqueror of sleep), and PARAMTAPAH (destroyer of all enemies), ARJUN spoke clearly to the great Lord KRISHNA in a determined and assured voice that he would not fight, and then became silent.
56
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.10
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत । सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः ॥ २.१० ॥
हे भरतवंशी धृतराष्ट्र ! अन्तर्यामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों सेनाओंके बीचमें शोक करते हुए उस अर्जुनको हँसते हुए से यह वचन बोले|
“O ARJUNA,” HRISHIKESA spoke smilingly, as ARJUNA stood between the two armies:
57
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.11
श्रीभगवानुवाच । अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥ ...
श्रीभगवान् बोले—हे अर्जुन ! तू न शोक करनेयोग्य मनुष्योंके लिये शोक करता है और पण्डितोंके से वचनोंको कहता है; परंतु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गये हैं उनके लिये भी पण्डितजन शोक नहीं करते
ARJUNA, you show your grief and compassion for those who do not deserve your grief, compassion or sympathy. Although your words are filled with wisdom, you must remember, the wise men never grieve for the living or the dead.”
58
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.12
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः । न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ॥ २.१२ ॥
न तो ऐसा ही है कि मैं किसी कालमें नहीं था, नहीं था अथवा ये राजालोग नहीं थे और न तू ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे|
ARJUNA”, always remember, there has never been a time when you or any of the great warriors present here, were not alive or non-existent, nor will we all, at any time, cease to exist and live on in the future.
59
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.13
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा । तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥ २.१३ ॥
जैसे जीवात्माकी इस देहमें बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीरकी प्राप्ति होती है; उस विषयमें धीर पुरुष मोहित नहीं होता|
Lord Krishna continued:Dear ARJUNA, the wise never get confused by the fact that the ATMA or Soul goes through the stages of childhood, youth and old age along with the body. When one body ceases to function, the soul passes on to another body. The cycle is then repeated once more.
60
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.14
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः । आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥ २.१४ ॥
हे कुन्तीपुत्र ! सर्दी-गर्मी और सुख दुःखको – देनेवाले इन्द्रिय और विषयोंके संयोग तो उत्पत्ति विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिये हे भारत ! उनको तू सहन कर|
The Blessed Lord continued: son of KUNTI (Arjuna), when the senses come in contact with their sensual objects, feelings of heat, cold, pain and pleasure. These feelings last only for a short time; they will come and go. Bear them patiently dear ARJUNA.
61
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.15
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ । समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥ २.१५ ॥
क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ठ ! दुःख सुखको समान – समझनेवाले जिस धीर पुरुषको ये इन्द्रिय और विषयोंके संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्षके योग्य होता है|
Only he who is not affected by these senses and sensual objects becomes immortal, for he is considered the best of men because he is well balanced in pain and pleasure.
62
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.16
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥ २.१६ ॥
असत् वस्तुकी तो सत्ता नहीं है और सत्का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनोंका ही तत्त्व तत्त्वज्ञानी पुरुषोंद्वारा देखा गया है
The Blessed Lord stated:The unreal does not exist and the real always exists. Those with peaceful, pure and wise minds, know the truth about both the real and unreal.
63
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.17
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् । विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥ २.१७ ॥
नाशरहित तो तू उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत्–दृश्यवर्ग व्याप्त है । इस अविनाशीका विनाश करनेमें कोई भी समर्थ नहीं है|
He who is completely indestructible, present everywhere in the universe, and is imperishable, regard Him as God O ARJUNA.
64
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.18
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः । अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥ २.१८ ॥
इस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्माके ये सब शरीर नाशवान् कहे गये हैं। इसलिये हे भरतवंशी अर्जुन! तू युद्ध कर|
The Blessed Lord explained: O ARJUNA, only the body can be destroyed; but the soul is indestructible, permanent and immortal. Therefore ARJUNA, pick up your weapons and fight!
65
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.19
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् । उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥ २.१९ ॥
जो इस आत्माको मारनेवाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते; क्योंकि यह आत्मा वास्तवमें न तो किसीको मारता है और न किसीके द्वारा मारा जाता है|
O ARJUNA, he who thinks of the Soul as a killer and he who thinks that Soul can be killed, is ignorant, because the Soul can never be killed nor can it kill anyone or anything.
66
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.20
न जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते ह...
यह आत्मा किसी कालमें भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है; शरीरके मारे जानेपर भी यह नहीं मारा जाता|
The Blessed Lord said: Dear ARJUNA, the ATMAN or Soul can neither be born nor can it die. It is forever immortal, eternal and ancient. The Soul in a body does not die when the body itself perishes and ceases to exist. The Soul always lives on.
67
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.21
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् । कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥ २.२१ ॥
हे पृथापुत्र अर्जुन ! जो पुरुष इस आत्माको नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है ?
ARJUNA, he who knows the Soul to be eternal, indestructible, permanent unborn, and endless, that person can neither kill nor be killed.
68
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति ...
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रोंको त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरोंको त्यागकर दूसरे नये शरीरोंको प्राप्त होता है|
The Blessed Lord said: Just as a person gets rid of old clothing and replaces the old clothing with new ones, similarly, the soul changes from one body to a new body when its body has become old worn out and has stopped functioning.
69
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.23
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ २.२३ ॥
इस आत्माको शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता|
The Soul cannot be cut by weapons, burnt by fire, absorbed by air, nor can water wet the Soul.
70
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.24
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च । नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥ २.२४ ॥
क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसन्देह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, रहनेवाला और सनातन है|
The Soul is eternal, everlasting. It cannot be destroyed, broken or burnt; it cannot become wet nor become dried. The Soul is the most stable thing in the universe, it is immovable and present throughout the universe.
71
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.25
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते । तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ॥ २.२५ ॥
यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है। इससे हे अर्जुन! इस आत्माको उपर्युक्त प्रकार से जानकर तू शोक करनेको योग्य नहीं है अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है
The Soul cannot be seen, With this mind, dear changed by any means. With this mind, dear ARJUNA, one should never grieve.
72
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.26
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् । तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ॥ २.२६ ॥
किन्तु यदि तू इस आत्माको सदा जन्मनेवाला तू तथा सदा मरनेवाला मानता हो, तो भी हे महाबाहो ! तू इस प्रकार शोक करनेको योग्य नहीं है|
Even if you incorrectly believe. O ARJUNA, that the Soul is constantly taking birth and dying, you should still not become upset and filled with grief and sadness.
73
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.27
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥ २.२७ ॥
क्योंकि इस मान्यताके अनुसार जन्मे हुएकी मृत्यु निश्चित है और मरे हुएका जन्म निश्चित है । इससे भी इस बिना उपायवाले विषयमें तू शोक करनेको योग्य नहीं है|
Dear ARJUNA, knowing the fact that anything that takes birth will eventually die, it seems pointless to grieve over someone’s death, especially if you knew that the death had to take place anyway.
74
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.28
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥ २.२८ ॥
हे अर्जुन ! सम्पूर्ण प्राणी जन्मसे पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जानेवाले हैं, केवल बीचमें ही प्रकट हैं; फिर ऐसी स्थितिमें क्या शोक करना है ?
ARJUNA, all beings are unseen before birth, are seen after birth and during their lives; again, however, all beings are unseen after death. So what cause is there to worry?
75
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.29
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन- माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः । आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं...
कोई एक महापुरुष ही इस आत्माको आश्चर्यकी भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्त्वका आश्चर्यकी भाँति वर्णन करता है तथा दूसरा कोई अधिकारी पुरुष ही इसे आश्चर्यकी भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता
Few look upon “the Soul” with curiosity. Some talk and hear of “the Soul” with curiosity and enchantment, but in the end, there is nobody who can really understand and comprehend “the Soul.”
76
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.30
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत । तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥ २.३० ॥
हे अर्जुन ! यह आत्मा सबके शरीरोंमें सदा ही अवध्य है। इस कारण सम्पूर्ण प्राणियों के लिये शोक करनेके योग्य नहीं है|
ARJUNA, although the body can be slain, the Soul cannot. The Soul of a being lives on forever, therefor it is not necessary to grieve over anybody’s death because the most important part of them never dies at all, and that is, their Souls.
77
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.31
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि । धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥ २....
तथा अपने धर्मको देखकर भी तू भय करनेयोग्य नहीं है अर्थात् तुझे भय नहीं करना चाहिये; क्योंकि क्षत्रियके लिये धर्मयुक्त युद्धसे बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है|
Looking upon your duty, ARJUNA, as a Kshatriya (warrior), you should never be afraid, but be courageous, because there is nothing better for a Kshatriya than to fight in a righteous war.
78
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.32
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् । सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥ २.३२ ॥
हे पार्थ! अपने-आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्गके द्वाररूप इस प्रकारके युद्धको भाग्यवान् क्षत्रियलोग ही पाते हैं|
Dear ARJUNA, you should consider yourself a very lucky warrior to fight in a war where for the victor, the prize is entrance to the gates of heaven.
79
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.33
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि । ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥ २.३३ ॥
किन्तु यदि तू इस धर्मयुक्त युद्धको नहीं करेगा तू तो स्वधर्म और कीर्तिको खोकर पापको प्राप्त होगा|
By not fighting this war, O ARJUNA, you are committing a sin because you fail to perform your duty as a warrior and you also will lose your honour.
80
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.34
अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् । सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते ॥ २.३४ ॥
तथा सब लोग तेरी बहुत कालतक रहनेवाली अपकीर्तिका भी कथन करेंगे और माननीय पुरुषके लिये अपकीर्ति मरणसे भी बढ़कर है|
People will talk and look upon you, O ARJUNA, with disrespect. There is only one thing worse than death itself, and that is, disrespect for a respectable man.
81
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.35
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः । येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥ २.३५ ॥
और जिनकी दृष्टिमें तू पहले बहुत सम्मानित होकर अब लघुताको प्राप्त होगा, वे महारथीलोग तुझे भयके कारण युद्धसे हटा हुआ मानेंगे|
O ARJUNA, your high esteem and reputation will become ruined if you do not fight this battle. The mighty warriors will consider you lower than them and will believe that you did not fight the battle because you feared the opponent.
82
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.36
अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः । निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् ॥ २.३६ ॥
तेरे वैरीलोग तेरे सामर्थ्यकी निन्दा करते हुए तुझे बहुत-से न कहने योग्य वचन भी कहेंगे; उससे अधिक दुःख और क्या होगा ?
You will experience tremendous pain when your enemies laugh at your lack of strength and courage and say many shameful and humiliating things about you, O ARJUNA.
83
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.37
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् । तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥ ...
या तो तू युद्धमें मारा जाकर स्वर्गको प्राप्त होगा अथवा संग्राममें जीतकर पृथ्वीका राज्य भोगेगा । इस कारण हे अर्जुन! तू युद्धके लिये निश्चय करके खड़ा हो जा|
O ARJUNA, if you fight this battle, think of how it shall benefit you. If you die during battle, you will go to heaven and be in eternal peace. If you shall be victorious O ARJUNA, you will be the ruler of this Kingdom. O ARJUNA, stand up, take courage, and fight!
84
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.38
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ । ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥ २.३८ ॥
जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःखको समान समझकर, उसके बाद युद्धके लिये तैयार हो जा; इस प्रकार युद्ध करनेसे तू पापको नहीं प्राप्त होगा|
The Blessed Lord spoke unto Arjuna: O ARJUNA, by considering victory and defeat, pleasure and pain, gain and loss with indifference, you will not commit any sin.
85
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.39
एषा तेऽभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु । बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥ ...
हे पार्थ! यह बुद्धि तेरे लिये ज्ञानयोगके१ विषयमें कही गयी और अब तू इसको कर्मयोगके विषयमें सुन – जिस बुद्धिसे युक्त हुआ तू कर्मोंके – बन्धनको भलीभाँति त्याग देगा अर्थात् सर्वथ नष्ट कर डालेगा|
O ARJUNA, you already have been presented knowledge. Now you must put this knowledge to practical use O ARJUNA, with selfless KARMYOGA, O ARJUNA, by doing your duty and leaving the results of your actions to the Lord, you will break the bonds of KARMA.
86
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.40
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते । स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥ २.४० ॥
इस कर्मयोगमें आरम्भका अर्थात् बीजका नाश नहीं है और उलटा फलरूप दोष भी नहीं है, बल्कि इस कर्मयोगरूप धर्मका थोड़ा सा भी साधन जन्म मृत्युरूप महान् भयसे रक्षा कर लेता है|
When one practises Yoga, there is no fear of destruction; the person does not suffer a loss of honest effort in whatever he or she attempts. Even by practising a little bit of Yoga, one is protected from great fear ( of death or danger). Peace of mind is slowly obtained.
87
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.41
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन । बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥ २.४१ ॥
हे अर्जुन! इस कर्मयोगमें निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है; किन्तु अस्थिर विचारवाले विवेकहीन सकाम मनुष्योंकी बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदोंवाली और अनन्त होती हैं|
Those with a firm mind, O ARJUNA, are decisive about everything. Those whose minds are infirm are not decisive in their actions and their intellect wanders in many directions.
88
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.42
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः । वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥ २.४२ ॥
हे अर्जुन! जो भोगोंमें तन्मय हो रहे हैं, जो हैं, जिनकी बुद्धिमें स्वर्ग ठी है और जो स्वर्गसे परम प्राप्य वस्तु बढ़कर दूसरी कोई वस्त ही नहीं है ऐसा कहनेवाले हैं, वे अविवेकीजन इस जिस पुष्पित अर्थात् दिखाऊ शोभायुक्त वाणीको कहा करते जो कि जन्मरूप कर्मफल देनेवाली एवं भोग तथा ऐश्वर्यकी प्राप्तिके लिये नाना प्रकारकी बहुत सी क्रियाओंका वर्णन करनेवाली है, उस वाणीद्वारा जिनका चित्त हर लिया गया है, जो भोग और ऐश्वर्यमें अत्यन्त आसक्त हैं: उन पुरुषोंकी परमात्मामें निश्चयात्मिका होती|
O ARJUNA, unwise people who think of nothing but material desires and pleasures, and who believe in the Vedas as well, think that heaven means the absolute end of oneself.
89
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.43
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् । क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥ २.४३ ॥
इच्छाओं से भरा हुआ, स्वर्ग को अपने लक्ष्य के रूप में रखते हुए, वे फूलों के शब्दों का उच्चारण करते हैं, जो अपने कार्यों के इनाम के रूप में नए जन्म का वादा करते हैं, और आनंद और लॉर्डशिप की प्राप्ति के लिए विभिन्न विशिष्ट कार्यों को निर्धारित करते हैं।
Full of desires, having heaven as their goal, they utter flowery words, which promise new birth as the reward of their actions, and prescribe various specific actions for the attainment of pleasure and Lordship.
90
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.44
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् । व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥ २.४४ ॥
क्योंकि, जो लोग आनंद और प्रभुता से चिपके रहते हैं, जिनके मन इस तरह के शिक्षण से दूर हो जाते हैं, वे न तो निर्धारित और दृढ़ हैं और न ही वे स्थिर ध्यान और समाधि के लिए उपयुक्त हैं।
For, those who cling to joy and Lordship, whose minds are drawn away by such teaching, are neither determinate and resolute nor are they fit for steady meditation and SAMADHI.
91
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.45
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन । निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥...
हे अर्जुन! वेद उपर्युक्त प्रकारसे तीनों गुणोंके कार्यरूप समस्त भोगों एवं उनके साधनोंका प्रतिपादन करनेवाले हैं; इसलिये तू उन भोगों एवं उनके साधनोंमें आसक्तिहीन, हर्ष- शोकादि द्वन्द्वोंसे रहित, नित्यवस्तु परमात्मामें स्थित, योग-क्षेमको२ न चाहनेवाला और स्वाधीन अन्त:- करणवाला न हो|
The Blessed Lord spoke: The Vedas deal mainly with the three Gunas (qualities and nature). One of these is known as the material portion of life in the world. You must overcome all of these Gunas, O ARJUNA. Get rid of all you doubts. Free yourself of all frustrations and grief and devote mind and soul to God. This is true peace and happiness.
92
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.46
यावानर्थ उदपाने सर्वतः संप्लुतोदके । तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः ॥ २.४६ ॥
सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है, ब्रह्म को तत्व से जानने वाले ब्राह्मण का समस्त वेदों में उतना ही प्रयोजन रह जाता है|
O ARJUNA, to an enlightened soul, the Vedas are only as useful as a tank of water during a flood.
93
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥ २.४७ ॥
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो|
O ARJUNA, always remember what I am about to say to you for it is the law of KARMA, a law that one should always obey in life should he/she ever feel resentment, frustration, anxiety, or grief:You have the right only to perform your actions, duties and responsibilities in life; however, the results of these actions should not concern you at all. You should not even desire results for your actions because the results are simply not in your hands, but in the hands of the Lord. Neither should you lean towards inaction. (This is the most important shloka describing Karmyoga.)
94
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.48
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनंजय । सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ २.४८ ॥
हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व (जो कुछ भी कर्म किया जाए, उसके पूर्ण होने और न होने में तथा उसके फल में समभाव रहने का नाम ‘समत्व’ है।) ही योग कहलाता है|
The Divine Lord said: O ARJUNA, perform all your actions with an even mind. In other words, do not feel overjoyed at the successes in your life and do not allow yourself to feel overcome with grief because of any failures you may encounter on life. Rid yourself of any attachments to material things and always remember that the results of your actions is in the Lord’s hands. If you react the same way, regardless of the result of your actions, you are performing what is known as KARMYOGA.
95
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.49
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनंजय । बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥ २.४९ ॥
इस समत्वरूप बुद्धियोग से सकाम कर्म अत्यन्त ही निम्न श्रेणी का है। इसलिए हे धनंजय! तू समबुद्धि में ही रक्षा का उपाय ढूँढ अर्थात्‌ बुद्धियोग का ही आश्रय ग्रहण कर क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यन्त दीन हैं|
The Blessed Lord said unto ARJUNA:When actions are performed by a person for any selfish motive or gain, that person shall always suffer and remain disappointed in life. Those, however, who practice KARMYOGA  or the Yoga of even-mindedness, are free from any worries or disappointments for they do not care for the results of their actions and duties.
96
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.50
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥ २.५० ॥
समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व रूप योग में लग जा, यह समत्व रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंध से छूटने का उपाय है|
That person who devotes himself to a life of KARMYOGA with no selfish motives in mind does not become hungry for power, nor does he become attached to any of the bad and disgusting things in life. Therefore, O ARJUNA, always strive to achieve selfless KARMYOGA, for this is the path of perfection in life.
97
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.51
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः । जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥ २.५१ ॥
क्योंकि समबुद्धि से युक्त ज्ञानीजन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्यागकर जन्मरूप बंधन से मुक्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं|
Those individuals who have devoted their lives to the practice of KARMYOGA, they not only free themselves of the worries that accompany anticipation of results after performing certain actions, but also free themselves of all sins and achieve the supreme state of everlasting peace and happiness.
98
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.52
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति । तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥ २.५२ ॥
जिस काल में तेरी बुद्धि मोहरूपी दलदल को भलीभाँति पार कर जाएगी, उस समय तू सुने हुए और सुनने में आने वाले इस लोक और परलोक संबंधी सभी भोगों से वैराग्य को प्राप्त हो जाएगा|
When you finally reach the state where your mind is free from all attachments and pleasures in life, your intellect will clear and will give you the ability to think logically, and wisely, whenever you need to.
99
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.53
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला । समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥ २.५३ ॥
भाँति-भाँति के वचनों को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्धि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जाएगी, तब तू योग को प्राप्त हो जाएगा अर्थात तेरा परमात्मा से नित्य संयोग हो जाएगा|
Your intellect, O ARJUNA, will then allow you to distinguish between the real and the unreal in life. You will no longer have conflicts about opinions of life’s many aspects and characteristics. You will know what is of importance and of no importance. Finally, you will reach the state where you will have achieved KARMYOGA, a state of long-lasting peace and happiness.
100
Sankhya Yoga
Chapter 2
Verse 2.54
अर्जुन उवाच । स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥ ...
अर्जुन बोले– हे केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिरबुद्धि पुरुष का क्या लक्षण है? वह स्थिरबुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?
Arjuna asked the Lord:Dear KESHAVA (Krishna), what are the characteristics of a man who is very wise, has a firm intellect and is placed or engrossed in a superconscious state? How does this type of person speak, sit and walk?

Bhagavad Gita Dataset

Description

This dataset contains the Bhagavad Gita, a 700-verse Hindu scripture. It is part of the Indian epic Mahabharata (chapters 23–40 of the Bhishma Parva) and is written in the form of a dialogue between Prince Arjuna and Krishna, who serves as his charioteer. In the dialogue, Krishna provides guidance on how to deal with moral dilemmas and the path to spiritual enlightenment.

Contents

The dataset contains the following columns:

  • Verse: The verse in the Bhagavad Gita.
  • Chapter: The chapter in which the verse is found.
  • Meaning: The general meaning or theme of the verse.
Downloads last month
68
Edit dataset card